आज की कहानी हमें यह सिखाने के लिए है के जीवन में ये ध्यान रखना आवश्यक है कि हम अपना जीवन किस कार्य और किस विचार के प्रति समर्पित होकर जीते हैं।
हम आपके लिए लाते हैं ऐसी कहानियां जो इंटरेस्टिंग तो हैं ही, साथ ही हमें कुछ सिखाती भी हैं। तो सीधा शुरू करते हैं आज की कहानी।
आज की कहानी है द्वितीय विश्व युद्ध यानी 2nd World War के समय पर हुई एक घटना के बारे में। War शुरू होने के लगभग 10 साल बाद, सन 1944 के अंत में परिस्थितियां जापान के विपरीत होने लगी थीं। जापान की अर्थव्यवस्था युद्ध के कारण चरमराने लगी थी। उनकी सेना लगभग आधे एशिया में फैली हुई थी। प्रशांत क्षेत्र, जिसको पेसिफिक रीजन भी बोला जाता है उसमें जो भाग उन्होंने जीत लिए थे, अमेरिकी सेना एक-एक करके उनसे जापान का कब्जा छुड़ा रही थी। 26 दिसंबर 1944, जापान की शाही सेना के सेकंड लेफ्टिनेंट हिरो ओनोडा को फिलीपींस की लुबांग जगह के छोटे से द्वीप पर भेजा गया। ओनोड़ा को आदेश दिए गए थे, चाहे जो भी हो जाए डटकर लड़ना है, किसी भी कीमत पर समर्पण नहीं करना है, और जितना हो सके अमेरिका की बढ़त को रोकना है।
फरवरी 1945 में अमेरिकी सेना ने लुबांग आकर दीप को अपने कब्जे में ले लिया। कुछ ही दिनों में अधिकांश जापानी सैनिक या तो मारे गए या उन्होंने समर्पण कर दिया। पर ओनोडा अपने 3 लोगों के साथ भाग कर जंगल में छिप गया। जंगल से उन्होंने अमेरिकी सेना और वहां के लोकल लोगों के खिलाफ गोरिल्ला वर शुरू कर दिया। जैसे कि राशन लूट लेना, जानवर लूट लेने, या भटके हुए सैनिकों को मार देना।
6 महीने बाद अगस्त में अमेरिका ने हिरोशिमा और नागासाकी पर परमाणु बम गिरा दिया और जापान ने सरेंडर कर दिया। मानव इतिहास की सबसे बड़ी tragedy. जो हजारों जापानी सैनिक प्रशांत क्षेत्र में फैले हुए थे, उन्हें इस बात की कोई जानकारी ही नहीं थी। वो सैनिक अभी भी छुप कर अपनी लड़ाई जारी रखे हुए थे जिस कारण से शांति स्थापित करना बहुत ही मुश्किल हो रहा था। जापानी और अमेरिकी सेना ने मिलकर पूरे प्रशांत क्षेत्र में हजारों पर्चे गिराए जिन पर लिखा था कि युद्ध खत्म हो गया है और सब सैनिक अपने घर चले जाएं। बाकियों की तरह ओनोडा को भी वह पर्चे मिले पर ओनोडा को लगा कि यह अमेरिकियों की चाल है। उसने पर्चे जला दिए और अपनी लड़ाई जारी रखी।
5 साल बीत गए, पर्चे गिरने बंद हो गए, अधिकतर अमेरिकी सेना भी वापस चली गई। लुबांग के लोग भी वापस अपना साधारण जीवन जीना शुरु कर रहे थे पर ओनोडा अभी भी उस लड़ाई को जारी रखे हुए था। फसलें जला देना, लोगों के जानवर चुरा लेना, कोई गांव वाला भटक के जंगल में आ जाए उसको मार देना.. इस सब से परेशान होकर इस बार फिलीपींस की सरकार ने पर्चे बंटवाए जिन पर लिखा था के युद्ध खत्म हो चुका है घर वापस चले जाओ। ओनोडा ने उन्हें भी चाल समझकर अपनी लड़ाई जारी रखी। आखिर 1952 में जापानी सरकार ने एक आखरी कोशिश के तौर पर, सभी खोए हुए सैनिकों के परिवारों की फोटो के साथ, हवाई जहाज से जंगलों में लेटर गिराए। जिन पर जापान के सम्राट की तरफ से पर्सनल मैसेज लिखा था। पर हर बार की तरह इस बार भी ओनोडा ने उन पर विश्वास करने से मना कर दिया और अपनी लड़ाई जारी रखी।
और कुछ साल बीत जाने पर फिलीपींस के लोकल लोगों ने परेशान होकर हथियार उठा लिए। 1959 आते-आते ओनोडा के एक साथी को मार दिया गया और एक साथी ने समर्पण कर दिया। ओनोडा ने फिर भी अपनी लड़ाई जारी रखी। उसके 12 साल बाद ओनोडा का अंतिम साथी जिसका नाम कोजुका था, एक खेत को जलाते समय लोकल पुलिस के हाथों मारा गया। अब ओनोडा पूरी तरह अकेला पड़ गया। ओनोडा अब तक अपना आधे से ज्यादा जीवन जंगल में गुज़ार चुका था। ओनोडा ने सेना में 18 साल की उम्र में भर्ती की थी। और इस जंगल में लड़ते हुए अपने जीवन के लगभग 25 साल बिता दिए थे। फिर भी बिना कुछ सोचे अकेला होने के बाद भी ओनोडा अपनी लड़ाई जारी रखी।
1972 में कोजुका की मौत का समाचार जब जापान पहुंचा तो वहां हलचल मच गई। वहां के लोगों को लगता था कि सभी सैनिक वापस आ चुके हैं या मारे जा चुके हैं। पर अब जापानी सरकार और मीडिया यह सोचने लगे कि अगर कोजुका अभी तक जिंदा था तो ओनोडा भी अभी तक जिंदा हो सकता है। ओनोडा अब जापानी लोगों के लिए एक रहस्य का रूप ले चुका था। एक बार फिर फिलीपींस और जापान की सरकार ने मिलकर ओनोडा को ढूंढने के लिए मिशन चलाया पर उन्हें महीनों तक ढूंढने के बाद भी कुछ नहीं मिला। धीरे-धीरे अब ओनोडा जापान में एक लोककथा का रूप ले चुका था। सेकंड लेफ्टिनेंट ओनोडा जिसके ज़िंदा होने पर विश्वास करना मुश्किल था। कुछ के लिए वो एक हीरो था, कुछ के लिए पागल। कुछ उसकी मिसालें देते थे, तो कुछ उसकी आलोचना करते थे, तो कुछ के लिए वह बस एक काल्पनिक कहानी था।
इसी दौरान नोरियो सुज़ुकी नाम के एक लड़के ने ओनोडा के बारे में सुना। सुज़ुकी एक साहसी लड़का था जिसे एडवेंचर पसंद था। उसने अपनी पढ़ाई बीच में ही छोड़ कर घूमना शुरू कर दिया था। अपने जीवन के 4 साल एशिया, अफ्रीका और मिडिल ईस्ट में घूम कर बिताए थे। वह पार्कों में, जेलों में या सड़क पर सोता था। पैसों के लिए कोई भी काम कर लेता था जैसे मजदूरी या ब्लड डोनेट कर देना। वह साहसी होने के साथ शायद थोड़ा सनकी भी था। 4 साल इस तरह घूमने के बाद उसका साधारण जीवन में जापान में मन नहीं लगता था।
शायद उसको एक नए एडवेंचर की तलाश थी, जो हीरो ओनोडा के रूप में उसे मिल गया था। बस उसने ठान लिया कि वही ओनोडा को ढूंढ कर रहेगा। भले ही 3 देशों की सरकारें सब कुछ करके भी 30 साल तक जिसे ना ढूंढ पाई हों, वह उसे ढूंढ कर रहेगा। भले ही उसके पास ना सेना की कोई ट्रेनिंग हो ना कोई हथियार हो ना ही कोई जानकारी हो और वह उसे ढूंढ कर रहेगा। और उसका प्लान क्या था के लुबांग के जंगलों में अकेले घूम कर ओनोडा को चिल्ला चिल्ला कर ये बताऊंगा के सम्राट को ओनोडा की चिंता हो रही है।
शायद ओनोडा जैसे सनकी को ढूंढने के लिए, सुज़ुकी जैसा सनकी ही चाहिए था। सुज़ुकी ने उसे 4 दिन में ढूंढ लिया। इस पढ़ाई छोड़े हुए लड़के ने ओनोडा को 4 दिन में ढूंढ लिया। और सिर्फ ढूंढ ही नही लिया, ओनोडा से दोस्ती भी की और उसके साथ जंगल में ही कुछ दिन रहा भी। 1 साल से भी ज्यादा से अकेले रह रहे ओनोडा ने भी एक जापानी चेहरे को देख कर भरोसा कर लिया और जाना कि बाहरी दुनिया में क्या हो रहा है। सुज़ुकी ने ओनोडा से पूछा कि वह अब तक क्यों रुका हुआ है। ओनोडा कहा क्योंकि मेरे लिए आदेश था कि चाहे कुछ भी हो जाए समर्पण नहीं करना है। इसलिए अपने जीवन के प्रमुख 30 साल उसने सिर्फ एक आदेश के लिए समर्पित कर दिए। ओनोडा ने पूछा कि वह अकेला इन जंगलों में उसे ढूंढने क्यों आया है? सुज़ुकी ने कहा के वह जापान से 3 चीजों की खोज में निकला है, लेफ्टिनेंट ओनोडा, एक पांडा भालू और एक हिम मानव।
आत्मशक्ति के धनी दो साहसी व्यक्ति, अच्छे इरादों को मन में लेकर, शौर्य के एक झूठे सपने को जीते हुए, दोनों खुद को हीरो मानते हुए, अपना जीवन अकेले काट रहे हैं। अपने जीवन को झूठे शौर्य को समर्पित करके, एक अपना अधिकांश जीवन एक ऐसे युद्ध की भेंट चढ़ा चुका है, जिस युद्ध का अस्तित्व ही नहीं है। वह युद्ध जो 27 साल पहले ही खत्म हो चुका है। और दूसरा अपना जीवन एक ऐसे एडवेंचर के लिए समर्पित कर चुका है, जो हिम मानव की खोज में कुछ साल बाद हिमालय में उसकी जान ले लेगा। जी हां, ओनोडा के बाद पांडा भालू और उसके बाद हिम मानव को खोजने में सुजुकी कुछ साल बाद हिमालय में अपनी जान गवां बैठता है।
हम मनुष्य अपने जीवन का अधिकतर हिस्सा ऐसे कारणों और विचारों को समर्पित कर देते हैं, जिनका कोई अर्थ ही नहीं है। यह कल्पना करना भी बहुत मुश्किल है कि ओनोडा उन 30 सालों में कभी खुश हुआ होगा। कीड़ों को, चूहों को खाकर, सीलन में गीली मिट्टी में सो कर, आम गांव वालों की एक के बाद एक हत्या करके, साल दर साल इतने सबके बाद भी जापान वापसी के बाद, ओनोडा कहा कि उसे किसी चीज का पछतावा नहीं है। उसे अपने किए गए सब कार्यों पर गर्व है। उसे गर्व है कि उसने अपने जीवन का एक बड़ा हिस्सा अपने साम्राज्य को दिया। जबकि सच यह है कि वह साम्राज्य 27 साल से था ही नहीं। उसने अपने जीवन के 27 साल एक काल्पनिक साम्राज्य को दिए वह भी पूरे विश्वास और समर्पण के साथ।
इसलिए इस कहानी के शुरू में मैंने आपसे कहा था कि यह कहानी हमें सिखाती है कि जीवन में यह ध्यान रखना बहुत जरूरी है कि हम किस उद्देश्य या विचार के लिए अपना जीवन समर्पित कर रहे हैं। उससे क्या सच में कुछ अच्छा या सार्थक प्राप्त होगा या वह बस एक मृगतृष्णा की तरह हमारी कल्पना ही है। इन दोनों लोगों ने अपने कष्टों को, अपने दुखों को खुद चुना। ओनोडा ने एक खत्म हो चुके अस्तित्वहीन साम्राज्य के लिए और सुजुकी ने एक काल्पनिक हिम मानव के लिए। और उन दोनों के लिए उनके कष्टों के मायने थे। उनके हिसाब से वह एक महान उद्देश्य के लिए थे।
कहानी पर वापस आते हैं। फिर हीरो ओनोडा, 1974 में जापान वापस जाने के बाद वहां एक सेलिब्रिटी बन गया। रेडियो शो करना, टीवी शो करना, पॉलीटिशियन से मिलना, यह सब उसके जीवन का एक आम हिस्सा हो गया। ओनोडा अपनी एक किताब लिखी जिसका नाम है नो सेरेंडर।
अब आता है कहानी में एक और ट्विस्ट। जापान वापस आकर जो ओनोडा ने देखा उसने ओनोडा को अंदर तक दुखी कर दिया। जिस जनरेशन में ओनोडा बढ़ा हुआ था, उस जनरेशन को आत्मसम्मान और त्याग की संस्कृति के साथ बड़ा किया गया था। परंतु अब जापान बदल चुका था, उपभोक्तावाद, पूंजीवाद, बनावटी, दिखावटी चीजें अपना असर दिखा रही थीं। पश्चिमी सभ्यता का असर जापान पर हो रहा था। ओनोडा ने अपनी प्रसिद्धि को पुराने जापान की आत्मा को जगाने के लिए भी इस्तेमाल करने की कोशिश की, पर उसे समझ आया कि लोग उसकी बात को या उसको कोई महत्व ही नहीं देते। लोग उसे कोई विचारक नहीं बल्कि एक लोककथा से निकल कर आए हुए कैरेक्टर की तरह देखते हैं।
अब ओनोडा के जीवन का सबसे बड़ा व्यंग, सबसे बड़ी irony देखिए, ओनोडा उससे भी ज्यादा डिप्रेस्ड हो गया, जितना वह इतने सालों में कभी उस जंगल में भी नहीं हुआ। क्योंकि कम से कम जंगल में उसके जीवन के कुछ मायने तो थे। वहां सहा हुआ वह सारा दर्द, अकेलापन और वह सब परेशानी, वह सब एक उद्देश्य के लिए था पर अब जापान वापस आकर जापान की प्राचीन संस्कृति को खत्म होते देखकर उसका सामना एक कड़वे सच से हुआ के उसकी लड़ाई व्यर्थ चली गई। जिस जापान के लिए वह इतने वर्ष जंगलों में जिया और लड़ा वह जापान अब है ही नहीं। और इस एहसास ने उसे आज तक लगे किसी भी जख्म से ज्यादा दर्द दिया, क्योंकि अब उसके जीवन के वो 30 साल उसे व्यर्थ लगने लगे। आखिर 1980 में ओनोडा ने जापान छोड़ दिया और ब्राजील चला गया। और अपने मरने तक वहीं रहा।
आत्मज्ञान एक प्याज की तरह होता है। उसकी बहुत सारी बातें होती हैं। और जितना ज्यादा परतें खुलती जाती हैं उतना ही ज्यादा हम रोते हैं, दर्द से नहीं संतुष्टि से। इस प्याज की पहली परतें हमारे इमोशंस की समझ है। किससे हमें खुशी मिलती है किससे दुख और किससे हमें आशा मिलती है। हमें यह भी जानना बहुत आवश्यक है कि सच में जीवन में हमें क्या खुश और क्या दुखी करता है। ऊपरी दिखावटी नहीं, आंतरिक और महत्वपूर्ण चीजें।
इसकी दूसरी परत खुलती है यह ज्ञान होने से कि आखिर हमें यह सब इमोशंस क्यों फील होते हैं। इस परत को खोलने में महीनों से वर्षों का समय लग जाता है। किसी चीज से खुशी मिलती है, तो क्यों मिलती है। किसी पर गुस्सा आता है, तो क्यों आता है। वह बाहरी और दिखावटी उत्तर नहीं, जो हम चाहते हैं कि दूसरे माने, बल्कि वह असली और आंतरिक उत्तर जो हमारी अंतरात्मा जानती है।
उसके बाद आती है गहरी परतें जहां से रोना शुरू होता है। यह पढ़ते हैं हमारे व्यक्तिगत सिद्धांत, हमारी पर्सनल वैल्यूज। क्यों किसी चीज को हम सफलता या असफलता मानते हैं। हम स्वयं को किस आधार पर माप रहे हैं। वह कौन से स्टैंडर्ड है जिनसे हम खुद को, दूसरों को या दुनिया को जज करते हैं। हमारे जीवन के सिद्धांत क्या है। यह जो गहरी पढ़ते हैं ना उन्हें खोलने में बहुत सवाल और मेहनत लगते हैं। पर यह सबसे जरूरी है, क्योंकि हमारे सिद्धांत ही यह तय करते हैं कि हमारी प्रॉब्लम्स किस तरह की है और उससे ही हमारे जीवन की क्वालिटी तय होती है। हम क्या हैं और क्या करते हैं, यह सब कुछ बेसिकली हमारे सिद्धांतों पर ही निर्भर करता है।
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