शाम हो चली थी..
लगभग साढ़े छह बजे थे..
वही हॉटेल, वही किनारे वाली टेबल और वही चाय, सिगरेट..
सिगरेट के एक कश के साथ साथ चाय की चुस्की ले रहा था।
उतने में ही सामने वाली टेबल पर एक आदमी अपनी नौ-दस साल की लड़की को लेकर बैठ गया।
उस आदमी का शर्ट फटा हुआ था, ऊपर की दो बटने गायब थी. पैंट भी मैला ही था, रास्ते पर खुदाई का काम करने वाला मजदूर जैसा लग रहा था।
लड़की का फ्रॉक धुला हुआ था और उसने बालों में वेणी भी लगाई हुई थी..
उसके चेहरा अत्यंत आनंदित था और वो बड़े कुतूहल से पूरे हॉटेल को इधर-उधर से देख रही थी..
उनके टेबल के ऊपर ही चल रहे पँखे को भी वो बार-बार देख रही थी, जो उनको ठंडी हवा दे रहा था..
बैठने के लिये गद्दी वाली कुर्सी पर बैठकर वो और भी प्रसन्न दिख रही थी..
उसी समय वेटर ने दो स्वच्छ गिलासों में ठंडा पानी उनके सामने रखा..
उस आदमी ने अपनी लड़की के लिये एक डोसा लाने का आर्डर दिया.
यह आर्डर सुनकर लड़की के चेहरे की प्रसन्नता और बढ़ गई..
और आपके लिए? वेटर ने पूछा..
नहीं, मुझे कुछ नहीं चाहिये: उस आदमी ने कहा.
कुछ ही समय में गर्मागर्म बड़ा वाला, फुला हुआ डोसा आ गया, साथ में चटनी-सांभार भी..
लड़की डोसा खाने में व्यस्त हो गई. और वो उसकी ओर उत्सुकता से देखकर पानी पी रहा था..
इतने में उसका फोन बजा. वही पुराना वाला फोन. उसके मित्र का फोन आया था, वो बता रहा था कि आज उसकी लड़की का जन्मदिन है और वो उसे लेकर हॉटेल में आया है..
वह बता रहा था कि उसने अपनी लड़की को कहा था कि यदि वो अपनी स्कूल में पहले नंबर लेकर आयेगी तो वह उसे उसके जन्मदिन पर डोसा खिलायेगा..
और वो अब डोसा खा रही है..
थोडा पॉज..
नहीं रे, हम दोनों कैसे खा सकते हैं? हमारे पास इतने पैसे कहां है? मेरे लिये घर में बेसन-भात बना हुआ है ना..
उसकी बातों में व्यस्त रहने के कारण मुझे गर्म चाय का चटका लगा और मैं वास्तविकता में लौटा..
कोई कैसा भी हो..
अमीर या गरीब,
दोनों ही अपनी बेटी के चेहरे पर मुस्कान देखने के लिये कुछ भी कर सकते हैं..
मैं उठा और काउंटर पर जाकर अपनी चाय और दो दोसे के पैसे दिये और कहा कि उस आदमी को एक और डोसा दे दो, उसने अगर पैसे के बारे में पूछा तो उसे कहना कि हमनें तुम्हारी बातें सुनी आज तुम्हारी बेटी का जन्मदिन है और वो स्कूल में पहले नंबर पर आई है..
इसलिये हॉटेल की ओर से यह तुम्हारी लड़की के लिये ईनाम उसे आगे चलकर इससे भी अच्छी पढ़ाई करने को बोलना..
परन्तु, परंतु भूलकर भी “मुफ्त” शब्द का उपयोग मत करना, उस पिता के “स्वाभिमान” को चोट पहुचेंगी..
होटल मैनेजर मुस्कुराया और बोला कि यह बिटिया और उसके पिता आज हमारे मेहमान है, आपका बहुत-बहुत आभार कि आपने हमें इस बात से अवगत कराया।
उनकी आवभगत का पूरा जिम्मा आज हमारा है आप यह पुण्य कार्य और किसी अन्य जरूरतमंद के लिए कीजिएगा।
वेटर ने एक और डोसा उस टेबल पर रख दिया, मैं बाहर से देख रहा था..
उस लड़की का पिता हड़बड़ा गया और बोला कि मैंने एक ही डोसा बोला था..
तब मैनेजर ने कहा कि, अरे आपकी लड़की स्कूल में पहले नंबर पर आई है..
इसलिये ईनाम में आज हॉटेल की ओर से आप दोनों को डोसा दिया जा रहा है,
उस पिता की आँखे भर आई और उसने अपनी लड़की को कहा, देखा बेटी ऐसी ही पढ़ाई करेंगी तो देख क्या-क्या मिलेगा..
उस पिता ने वेटर को कहा कि क्या मुझे यह डोसा बांधकर मिल सकता है?
यदि मैं इसे घर ले गया तो मैं और मेरी पत्नी दोनों आधा-आधा मिलकर खा लेंगे, उसे ऐसा खाने को नहीं मिलता…
जी नहीं श्रीमान आप अपना दूसरा डोसा यहीं पर खाइए।
आपके घर के लिए मैंने 3 डोसे और मिठाइयों का एक पैक अलग से बनवाया है।
आज आप घर जाकर अपनी बिटिया का बर्थडे बड़ी धूमधाम से मनाइएगा और मिठाईयां इतनी है कि आप पूरे मोहल्ले को बांट सकते हो।
यह सब सुनकर मेरी आँखे खुशी से भर आई,
मुझे इस बात पर पूरा विश्वास हो गया कि जहां चाह वहां राह है…. अच्छे काम के लिए एक कदम आप आगे तो बढ़ाइए,
फिर देखिए आगे आगे होता है क्या!!