श्री जयदेव गोस्वामी परम वैष्णव संत थे। उनके साथ भगवान लीलाये करते रहते थे , उसमें से एक लीला इस प्रकार है.
जिस झोपड़ी में गोस्वामी जी रहते थे, उस झोपडी से बारिश में पानी टपकता था ,एक बार उनकी धर्मपत्नी पद्मावती ने अपने पति से झोपडी को ठीक करने की प्रार्थना की। जयदेव गोस्वामी जी कुछ घास -फूस एकत्रित करके उसको ठीक करने लगे, वो सीढ़ी से नीचे उतर कर के थोड़ा सा घास ऊपर ले कर जाते, फिर सीढ़ी से नीचे उतरते.
इसी प्रक्रिया को उन्होंने दो-तीन बार ही किया होगा, तभी उन्होंने देखा कि उनको नीचे से कोई घास उठा कर दे रहा है.. इस तरह से उनका जो कार्य तीन चार घंटे में खत्म होना था वह अति शीघ्र ही ख़त्म हो गया। वापिस झोपड़ी में आने पर उन्होंने अपनी पत्नी को झोपड़ी ठीक करने में मदद करने के लिए धन्यवाद किया। परन्तु उनकी पत्नी ने बताया की वह तो रसोई के कार्यों में व्यस्त थी, उसने उनकी कोई सहायता नहीं की।
यह सुनकर जयदेव गोस्वामी जी आश्चर्यचकित हो गए और सोचने लगे कि फिर उनकी सहायता किसने की। यही सोचते हुए स्नान करके जब मंदिर के अंदर गए, तो उन्होंने देखा उनके ठाकुर जी के सारे वस्त्रों पर घास -फूस लगा हुआ है!!
वो समझ गए उनकी सहायता उनके ठाकुर जी ने ही की है। अब तो गोस्वामी जी की आँखों अश्रु धारा बह निकली जो की रुकने का नाम भी नहीं ले रही थी। सत्य यही है की भगवान और उनके भक्तो कि एक अलग ही दुनिया होती है।